What will happen to the case if neither of the parties to a divorce case goes to Court?

What will happen to the case if neither of the parties to a divorce case goes to Court?

पति/पत्नी में से कोई भी पक्षकार तलाक के केस में कोर्ट नहीं जाये तो केस का क्या होगा?

हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार ये माना जाता है की एक बार जब लड़का-लड़की की शादी हो जाती है तो अगले 7 जनम के साथी हो गए। लेकिन आजकल के जो रिश्ते है उसमे ये आमबात हो गई है की शादी के बाद तलाक के लिए कोर्ट केस करना। लेकिन जब हम बात करे हमारी संस्कृति की, तो उसमे तलाक के बारे में खुलकर बात करना ठीक नहीं माना जाता था। परन्तु आज के आधुनिक युग को देखते हुए ये कहा जा सकता है की शादी होते ही वैवाहिक जोड़े तलाक के लिए कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच जाते है।

हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 13 के अंतर्गत तलाक के सभी आधार दिए। जिसमे पति और पत्नी दोनों के पास ये अधिकार होते है की वो तलाक के  सकते है। इसके साथ ही यदि पति पत्नी दोनों आपस में आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते है तो भी वे इस अधिनियम के अंतर्गत ले सकते है। इसके लिए कम से कम 1 साल तक का इंतजार करना होता है।

इस ब्लॉग में आप जानेंगे की, यदि कोई पति या पत्नी दोनों में से कोई भी पक्षकार अपने रिश्ते से खुश नहीं है और वो कोर्ट में तलाक के केस करते है लेकिन दूसरा पक्षकार कोर्ट में सुनवाई के दौरान नहीं आये तो उस केस का क्या होगा?

एक पक्षीय तलाक:

  • वैवाहिक जोड़ो में से कोई भी पक्षकार द्वारा जब तलाक का केस कोर्ट में फाइल किया जाता है तब कई बार सामने वाला पक्षकार कोर्ट में नहीं आता है। जिसकी वजह से बेमतलब में कोर्ट केस लम्बे समय तक चलते रहते है। इस कारण दूसरे पक्षकार को मानसिक परेशानी भी होती है। इस तरह के केस में कोर्ट एक्सपार्टी (ex-party) डिक्री दे देता है।
  • सिविल मुकदमे में 2 पक्ष होते हैं एक जो मुकदमा करता है उससे वादी कहा जाता है और दूसरा जो उस मुकदमे में बचाव करता है उसे प्रतिवादी कहा जाता है। जब वादी अपना मुकदमा कोर्ट में कर देता है उसके बाद प्रतिवादी को कोर्ट की तरफ से सम्मन भेजा जाता है ताकि वह कोर्ट में आकर अपना पक्ष रख सके। लेकिन यदि प्रतिवादी सम्मन पाकर भी नहीं आता है तो फिर रजिस्टर्ड डाक से उसे दोबारा नोटिस भेजा जाता है। अगर वह फिर भी नहीं आता है तो कुछ मामलों में कोर्ट वादी को समाचार पत्र में गजट कराने को बोलती है कि वह किसके ऊपर मुकदमा किया है उसका नाम केस नंबर और मुकदमा क्यों किया गया है उसका वजह पेपर में गजट कराएं। इसके साथ ही प्रतिवादी को भी सूचित करें गजट के माध्यम से कि वह कोर्ट में हाजिर हो। इसके बाद, यदि प्रतिवादी फिर भी कोर्ट में हाजिर नहीं होता है तो कोर्ट एकपक्षीय कार्यवाही करने का आदेश दे देता है।
  • जब पति या पत्नी के द्वारा अपने साथी से तलाक लेने के लिए कोर्ट में तलाक का मुकदमा किया जाता है। तलाक का केस रजिस्टर करने बाद अगर दूसरा पक्ष हाजिर नहीं होता है तो कोर्ट में वादी यानी जो मुकदमा करता है, कोर्ट उसके पक्ष में डिक्री देता है और जो डिक्री जी जाती है उसे एक्स पार्टी डिक्री कहते है और फिर विवाह विच्छेद हो जाता है। प्रतिवादी की लापरवाही की वजह से एक पक्षीय की करवाई होती है और वादी को  एक पक्षीय सुनवाई के आधार पर कोर्ट एक पक्षीय डिक्री दे देता है।

एक पक्षीय कार्यवाही और एक पक्षीय डिक्री में अंतर:

  • एक पक्षीय कार्यवाही और एक पक्षीय डिक्री अलग अलग होती है। जब वादी के इतनी कोशिशों के बावजूद और सम्मन भेजने के बाद भी प्रतिवादी नहीं आता है तब कोर्ट को यह विश्वास हो जाता है कि प्रतिवादी जानबूझकर नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में, जिससे कि वादी के अधिकारों का हनन हो रहा है तब कोर्ट एक पक्षीय कार्यवाही का आदेश देता है। उसके बाद वादी से कोर्ट एविडेंस मांगता है और वादी को अपने एविडेंस और गवाह कोर्ट में देने होते हैं। जब कोर्ट को ये विश्वास हो जाता है तो कोर्ट डिक्री देता है, जिसे एक पक्षीय डिक्री कहते है।
  • सिविल मुकदमों में एकपक्षीय आदेश जैसी चीज देखने को मिलती है। एकपक्षीय आदेश का मतलब होता है ऐसा आदेश जो केवल किसी एक पक्षकार को सुनकर दिया गया है। ऐसा आदेश डिक्री भी हो सकता है और निर्णय भी हो सकता है। अधिकांश वैवाहिक मामले जो पति पत्नी के विवाद से संबंधित होते हैं जैसे तलाक के मुकदमे, भरण पोषण के मुकदमे और संतानों की अभिरक्षा से संबंधित मामले में न्यायालय द्वारा एकपक्षीय कर दिया जाता है।
  • न्यायालय का यह मानना रहता है कि यदि उसने किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने हेतु बुलाया है और ऐसे बुलावे के बाद भी संबंधित व्यक्ति न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, तब न्यायालय उस व्यक्ति को एकपक्षीय सुनवाई कर डिक्री पारित कर देता है।

एक पक्षीय तलाक के बाद दूसरा शादी कब कर सकते हैं?

  • एक पक्षीय तलाक की डिक्री मिलने के बाद दूसरा विवाह करने के लिए कम से कम 90 दिनों का इंतजार करना पड़ता है। यानी जिस दिन आपको एक पक्षीय विवाह विच्छेद की आदेश की डिग्री मिल जाती है उसके 90 दिनों के बाद आप दूसरा विवाह कर सकते हैं।

एक पक्षीय तलाक लेने में समय:

  • एक पक्षीय तलाक में कितना समय लग सकता है, ये कही पर भी फिक्स नहीं होता है। लेकिन अनुमानत: एक से डेढ़ साल का समय लग ही जाता है एक पक्षीय तलाक  मिलने में।
  • कभी-कभी न्यायालय द्वारा दिया गया ऐसा एकपक्षीय आदेश न्याय के अनुरूप होता है। लेकिन कई बार ऐसा आदेश ठीक नहीं होता है, क्योंकि पक्षकार को उसका पक्ष रखने का अवसर ही नहीं दिया गया होता है। भारत के संविधान की मूल आत्मा यह है कि किसी भी मुकदमे में दोनों पक्षकार को सुना जाए और किसी भी पक्षकार के विरुद्ध बगैर सुने कोई निर्णय नहीं दिया जाए। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई पक्ष न्यायालय को परेशान करने के उद्देश्य से न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है और मामले को टाल रहा है।
  • जहां न्यायालय को यह लगता है कि पक्षकार उपस्थिति से बचने का प्रयास कर रहा है और न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष नहीं रखना चाहता है वहां न्यायालय ऐसा छल करने वाले पक्षकार को एकपक्षीय कर देता है।

पक्षकार के एकपक्षीय होने के कारण:

  • किसी सिविल मुकदमे में पक्षकार के एकपक्षीय होने के पीछे कुछ कारण होते हैं। इनमें सबसे प्रमुख यह है कि न्यायालय द्वारा सम्मन नोटिस जारी करने के बाद भी पक्षकार न्यायालय में उपस्थित नहीं होते हैं। ऐसे नोटिस की तामील को इस प्रकार के मामलों में महत्व दिया जाता है। न्यायालय जब भी कोई सम्मन या नोटिस जारी करता है तब ऐसा सम्मन या नोटिस रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से जारी किया जाता है।
  • रजिस्टर्ड डाक पर सम्मन को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होते हैं या फिर वह व्यक्ति डाक को लेने से इंकार कर देता है तब उसकी प्रविष्टि अंकित होती है। अगर कोई व्यक्ति न्यायालय द्वारा भेजी गई डाक को लेने से इंकार कर देता है या फिर दिए गए पते पर रहता नहीं है वहां से भाग चुका है या फिर ऐसी डाक को प्राप्त करने के बाद भी न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है। तब न्यायालय पक्षकार को एकपक्षीय करके अपना मामला सुना देता है।
  • वैवाहिक मुकदमे जैसे तलाक का मुकदमा, इसमें एक पक्ष न्यायालय के समक्ष परिवाद लाकर तलाक की मांग करता है। दूसरे पक्षकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वे न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें और न्यायालय को यह बताएं कि जिन आधारों पर परिवादी द्वारा तलाक मांगा जा रहा है वह आधार झूठे हैं और उनका कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन ऐसे वैवाहिक मामलों में एक पक्ष परिवाद लेकर आता है और दूसरा पक्ष न्यायालय के समक्ष उपस्थित ही नहीं होता है।
  • न्यायालय कई बार उन्हें नोटिस जारी करता है। यही नहीं बल्कि परिवादी को हस्तदस्ती देकर विपक्षी के घर पर उसको चस्पा कर देता है उसके बाद भी परिवादी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है। तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को मामले से एकपक्षीय कर देता है। फिर केवल परिवादी को ही सुना जाता है और उसी के आधार पर न्यायालय द्वारा अपना निर्णय दिया जाता है।

कैसे करवाएं ऐसे एकपक्षीय आदेश को निरस्त:

  • अगर ऐसा एकपक्षीय आदेश कानून के विपरीत किया गया है अर्थात बगैर नोटिस भेजे या बगैर समन के तामील हुए आदेश कर दिया गया है, तब कानून में ऐसे व्यक्ति को राहत दी गई है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 28 इसका प्रावधान करती है। यह धारा ऐसे आदेश को हाईकोर्ट में अपील देने हेतु निर्देशित करती है। इसके अंतर्गत पक्षकार परिवार न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं और ऐसी अपील में यह आधार बना सकते हैं कि जो आदेश दिया गया है वह उन्हें बगैर सुने दिया गया है। उन्हें किसी प्रकार का कोई सम्मन जारी नहीं किया गया और अगर सम्मन जारी किया गया है तब भी उस सम्मन की तामील नहीं की गई है, अर्थात सम्मन उन्हें प्राप्त ही नहीं हुआ है।
  • अगर न्यायालय में यह साबित हो जाता है कि वाकई में पक्षकार को न्यायालय द्वारा बुलवाए जाने का प्रयास ही नहीं किया गया, बगैर बुलाए ही मामले में निर्णय दे दिया गया। तब उच्च न्यायालय, परिवार न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को अपास्त करते हुए मामले की सुनवाई को फिर से शुरू करने के आदेश कर देता है। ऐसे प्रकरणों में परिसीमा अधिनियम की धारा 5 का भी उल्लेख रहता है क्योंकि इस अधिनियम की धारा 5 किसी भी मामले को न्यायालय में रखने में होने वाली देरी में छूट प्रदान करती है।
  • अगर ऐसी देरी में कोई युक्तियुक्त कारण रहा हो तब मामले में छूट देते हुए न्यायालय से आदेश कर देती है। लेकिन देरी का कारण युक्तियुक्त होना चाहिए। अगर यह साबित हो जाता है कि न्यायालय ने अपने समक्ष उपस्थित होने के लिए सभी प्रयास किए उसके बाद भी पक्षकार उपस्थित नहीं हुआ तब उच्च न्यायालय से भी किसी प्रकार की कोई राहत नहीं प्राप्त की जा सकती।
  • इसलिए न्यायालय से आने वाले किसी भी नोटिस या सम्मन की अवहेलना नहीं करनी चाहिए और जिस दिनांक को न्यायालय अपने समक्ष उपस्थित होने हेतु आदेश करें उस दिनांक को पक्षकारों को उपस्थित होना चाहिए।

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